शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ब्लॉग कई पर रचना एक

वाह कैसा अदभुत है ब्लोगजगत

तेरा यह इंद्रजाल,

लड्डू बोलता इंजीनियर के
दिल से
जहाँ और

डॉ॰ जमाल  पढ़ते

वेदकुरान,

करते  हैं गिरि जी

काम की बकवास,  अजी

नाइस नाइस की टिप्पणियों

के साथ सुमन जी

निकालते अपनी भड़ास,

पर सतीश सक्सेना जी कहते

लाइटली ले यार और सुन मेरे गीत,

प्रतुल जी सुनाते  इक

रामकहानी नई यार, और

चुटकी लेते नारदमुनी जी,

मेरा समस्त देता कृषि और

आयुर्वेद का ज्ञान,

महामूर्खराज की कलम से लिखता

मैं मूर्खता के नए ज्ञान

उड़न तश्तरी उड़ते इसके गगन मे

विजयप्रकाश जी सुनाते आपकी-हमारी

कुछ नई कुछ पुरानी कहानियाँ  

हाँ है यहाँ द्वंद ओ विवाद नए पुराने

होता इक नए महाभारत का शंखनाद

रोज यहाँ शीतयुध भी होता गुलजार

पर फिर भी मेरे यार!

ये ब्लॉगजगत हमारी अंजुमन है

है ये आधारशिला हमारे लोक संघर्ष की

है हमारा साझा  सरोकार और

बहाता प्रेम का निर्झरनीर

यह प्रस्तुति प्रतुल कहानिवाला जी के अन....ओ....खा...पन के नाम

दोस्तों आज तक ज़िंदगी मे सिर्फ कविताएँ पढ़ी है लिखी नहीं है बस आज एक कोशिश की है पता नहीं यह प्रस्तुति कविता की परिभाषा पर खरी उतरती भी की है नहीं। विजयप्रकाश जी और उड़ान तश्तरी जी के आदेशानुसार अभ्यासरत हूँ आध्यानरत हूँ बस इक उम्मीद के साथ की एक दिन कुछ बेहतर लिख पाऊँगा ।

इस प्रस्तुति मैंने जिन ब्लोगों के नाम प्रयुक्त किए है उनके खाताधारकों से अनुमति प्राप्त नहीं की है इसके लिए क्षमा याचना।

प्रयोग किए गए हर ब्लॉग का नाम उसके वेब एड्रैस से जोड़ा हुआ है बस नाम पर क्लिक कीजिये और उस ब्लॉग का आनंद लीजिए।

यह कोई प्रचार प्रसार की कोशिश नहीं है वरन अलग अलग तरह के ब्लॉगों को एक साथ जोड़ कर प्रेम और एकता का संदेश देने की मेरी एक छोटी सी कोशिश मात्र है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. एक innovative पोस्ट पढ़ आनंद आया. भाव और संदेश अच्छे हैं.केवल तुकबंदी कविता नहीं कहाती.बहुत बढ़िया...अच्छा प्रयास.

    जवाब देंहटाएं
  2. और यहां से जो अनुमति ले गए तो उसे लगाया नहीं मूर्खता का महीना और गधा करे शोर http://nukkadh.blogspot.com/2010/04/blog-post_09.html

    जवाब देंहटाएं
  3. मूर्खता का महीना और गधा करे शोर http://nukkadh.blogspot.com/2010/04/blog-post_09.html

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया रच गये भाई...अब एक स्टेप क्वालिफाई कर गये तो महा हटा सकते हो..अभी बस मूर्खराज कर लो. हा हा!!

    सच में बढ़िया प्रयास है, जारी रहो!!

    जवाब देंहटाएं
  5. मित्र महा...राज,
    नमस्ते! आप जैसे "जीव और प्रकृति प्रेमी व्यक्ति" विरले मिलेंगे. आपके ह्रदय में जो प्रेम का दरिया बह रहा है उसमें अगर कोई झगडालू या क्रोधी स्वाभावी भी डुबकी लगा ले तो निर्मल स्वाभावि हो जाए.
    लेकिन मित्र, आपका "सर्व सम्मान एक समान " वाला सूत्र व्यवहारिक नहीं हो सकेगा. यह केवल किसी दर्शन के स्तर पर विविध कार्यों के करने वालों में "एकाकार" महसूस कर सकता है. सोचो, जिस तरह "विष्ठा स्थान" और "वाणी स्थान" एक समान सम्मान नहीं पा सकते. बेशक आवश्यकता दोनों ही की क्यों ना हो.
    इसी तरह ब्लॉगजगत में कुछ ब्लॉगर ऐसे हैं जो किसी मुहीम को लेकर चल रहे प्रतीत होते हैं जिनका उद्देश्य सामाजिक शिष्टाचार और पवित्र भावनाओं को चोट पहुँचाना भर है.
    पर आप जैसे मस्तमौला ब्लॉगर उन्हें पहचानना नहीं जानते या सभी को निस्पृह और सज्जन मानते हैं. यह कोई दोष नहीं. यह केवल अतिमानवीयता है. आपके एकता के प्रयासों में मैं भी पीछे नहीं हटूंगा. यही प्रयास किसी ना किसी रूप में करूंगा. अभी जिनके प्रति कडवाहट भरी है उसे समाप्त कर लूं, यदि इस वर्ष कोई अनहोनी नहीं होती और किसी बिरादरी विशेष के लोग फिर से संलिप्त नहीं पाए जाते तो शायद दिल में भरी कडवाहट मिट पाए. प्रिय मित्र, लेकिन आपके प्रयास ज़ारी रहने चाहिए. शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं