तुम लौट आयी,
दूर हुआ हलाहल अंधेरा,
रोशनी की चकाचौंध देख,
भाई ये दिल मेरा,
गार्डेन गार्डेन हुआ,
विरह पीड़ा तो,
थी दिल मे,
पर तेरी भी,
अपनी मजबूरी थी,
प्रकृति के तूफ़ान ने,
रोके थे तेरे कदम,
पर आठवें दिन तेरा,
आ जाना भी,
किसी अष्टम अचरज,
से ना है कम,
संयोग भी क्या गज़ब है,
तेरे आगमन का,
इक तरफ मुख्यमंत्री जी,
पधारे ब्लोगजगत मा,
दुजी तरफ बिजलीरानी,
पधारी तू हमरे गाम मा,
(गाम = गाँव)
चक्रवाती तूफान को आए आठ दिन बीत गए। बिजली के खंभे टूट गए थे, पर आज व्यवस्था दुरुस्त हुई बिजली रानी झलक दिखला कर चली गयी पर उम्मीद है............................
अरे भाई विश्वास है की ये चंचला चपला अब बराबर झलक दिखलाती रहेगी।
भाई खुशी के मारे भावनाओं का समुद्र उमड़ पड़ा है बस आपके साथ मिल कर खुशियाँ मनाना चाहता हूँ।
एक पुरानी कहावत
बिन पानी सब सून
पर महामूर्खराज उवाच:
बिन बिजली पानी सब सून
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
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