शनिवार, 20 जून 2015

एक वापसी चेतना और पहचान की

काफी समय से ब्लाग-जगत से दूर रहा। पर मन में हमेशा यह इच्छा रही कि वापसी करूं ,लेकिन शायद उसे लक्ष्य की कमी कहूं या विषय की सो कर ना पाया । अब वो कमी समाप्त हो गई है । अब से इस ब्लॉग का विषय रहेगा "चेतना" और लक्ष्य  रहेगा "पहचान" ।

आशा है कि आप ब्लॉगर-बन्धु और पाठक मेरी मुर्खता में मेरा उत्साह वर्धन और मार्गदर्शन करेंगे ।

धन्यवाद ।

बुधवार, 7 जुलाई 2010

ब्लॉगिंग से अवकाश

मेरे पाठकों मैं हिन्दी ब्लॉगिंग से अवकाश ग्रहण कर रहा हूँ वैसे भी काफी समय से मेरा लेखन कार्य बंद ही रहा है। आखिर लीची और आम का मौसम चालू होने की वजह से अपने बगानों मे थोड़ा व्यस्त हो गया था। अब यह मौसम भी ख़त्म होने को है। व्यस्तता तो कम हो गयी है पर............

भविष्य में मेरा लेखन कार्य कब फिर से शुरू होगा इसकी समय सीमा तो तय नहीं की है पर शुरू अवश्य करूँगा।

हाँ और एक बात मेरे पास एक मामूली सा हुनर है जिससे मैं आप सभी हिन्दी के ब्लोगेरों की सेवा करना चाहता हूँ। फिलहाल अपने इस हुनर पर शोध और अभ्यास जारी है अधिक जानकारी इस हुनर पर आधारित अपने एक नए ब्लॉग के जरिये शोध की समाप्ति के बाद दूंगा।

उड़न तश्तरी जी , विजय प्रकाश जी, मित्र प्रतुल कहानीवला जी, आनंद पांडे जी, सतीश सक्सेना जी,  मेरे ब्लॉग का नाम शामिल करने वाले ब्लॉग " हमारी आवाज" के सभी योगदान कर्ताओं तथा इस चिट्ठाजगत के तमाम सदस्यों को मेरा कोटी कोटी धन्यवाद । 

बुधवार, 26 मई 2010

मुझे गर्व है की मैं भारतीय हूँ पर वजह शून्य है।

जी हाँ मैं सत्य कह रहा हूँ आखिर ऐसी क्या वजह हो सकती है की हम अपने भारतीय होने पर गर्वित महसूस करें। अब आप कई उदाहरण देंगे और मुझे मूर्ख साबित करेंगे वैसे मैं तो हूँ ही महामूर्खराज। पर जो कह रहा हूँ सत्य ही कह रहा हूँ। थोड़ी दलील मेरी भी सुन लीजिए।

वैसे भी इस ब्रहमाण्ड का जन्म भी शून्य से हुआ है यह तो एक वैज्ञानिक तथ्य है। अध्यात्म और तत्व ज्ञान भी तो इसी शून्य के इर्द गिर्द घूमते हैं।  तो यदि मेरा भारतीय होने पर  गौरवान्वित होने की वजह शून्य है तो मेरा क्या गुनाह। वैसे भी आज भारतीय होना नकारात्मकता को ही घोतक है ठीक जैसे शून्य होना। और मूर्ख होना भी शून्यता का प्रतीक पर गौर कीजिये तो महा से महाज्ञानी भी मूर्ख है क्योंकि पूर्णता भी शून्य है और अपूर्णता भी शून्य है।

इस शून्य की जन्मभूमि भी हमारा भारतवर्ष है। वह देश जो विश्व की सबसे पुरातन जीवित सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है। संस्कृत जैसी अत्यंत वैज्ञानिक भाषा का सूत्रधार है। आजतक विश्व मे जितनी भी खोजें और आविष्कार हुये हैं वह बिना भारतीय सहयोग के असंभव हैं। या तो इन खोजी और आविष्कारक दलों में कोई कोई भारतीय या भारतीय मूल का वैज्ञानिक होता है यदि भारतीय मूल का व्यक्ति भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा होता है तो वो प्रतिनिधित्व भारत पुत्र शून्य करता है।

जब पश्चिम सभ्य होना सीख रहा था तब भारतवर्ष इस्पात पर अनुसंधान कर रहा था। आज पश्चमी विश्वविद्यालय अपनी श्रेष्ठता का गुणगान करते हैं पर भारत तो इस विश्वविद्यालय संरचना का ही जनक है तक्षशिला और नालंदा इसके उदाहरण हैं।

फिर भी आज आम हो या खास हर भारतीय के लिये, "मुझे गर्व है की मैं भारतीय हूँ" सरीखे वाक्य महत्वहीन हैं। शायद यही वजह है की हम अपने राष्ट्रगान पर खड़े होने मे अपनी प्रतिष्ठा का हनन और वन्दे मातरम का गान भी विवादित है। पर नैतिक पतन को जीवित रहने की जरूरत और बुध्दू बक्से और सिनेमा अरे अब तो यूँ कहे की आम जीवन मे प्रदर्शित भोंडेपन को समय की जरूरत बताते फिरते है।

वास्तविकता यह है की हम अपनी मौलिकता खोते जा रहे हैं खुद को भारतीय कहते हैं पर अपनी विरासत को भूलते जाते है।

गांधी के बंदर वाले मौलिक भारतीय विचार को अप्रायोगिक और आज के समयानुसार बकवास बताते है पर नकलची बंदर की तरह पश्चिम का अनुसरण करने मे गर्व महसूस करते है।

संक्षेप मे कहे तो हम जन्म से भारतीय हैं पर कर्म और विचार से पश्चमी विदेशी। हम आज व्यथित हैं देश स्वार्थी नेताओं के हाथों मे है पर उसका कारण भी तो हमारा अपनी मौलिक विचारधारा से दूर होना ही है क्योंकि भारतीय दर्शन आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है पर पश्चमी दर्शन भौतिकता से।

गर्व से कहो हम भारतीय हैं पर भारतीयता शून्य भारतीय

बुधवार, 19 मई 2010

अपने घर की बात छवियों द्वारा

मेरा वर्तमान और पैतृक निवास जिसने मेरा बचपन सींचा

DSC00235 

DSC00243

 मेरा छोटा सा पुस्तक संग्रह और मेरा लैपटाप

DSC00244 

घर के पिछवाड़े मे बसी सब्जियों की बगिया

DSC00265 

DSC00267

मेरी कर्मभूमि मेरे खेत-खलियान

DSC00269 

DSC00270

मेरी प्यारी गायें

DSC00274

मेरे सबसे प्यारे दोस्त

DSC00273

DSC00306

फूलों की बगिया

DSC00295

DSC00296

DSC00299

मंगलवार, 18 मई 2010

जलजला जी की आपबीती महामूर्खराज की जुबानी

हाँ मैं छद्मनामधारी जलजला हूँ
जिसके नाम का मचा
चिट्ठाजगत मे कोहराम है
नरों मे श्रेष्ठ कौन की
चर्चा से अभिभूत हो
रचा मैंने नारियों मे
श्रेष्ठ कौन का एक
नया जूमला पर
भूल गया था
नारी सशक्तिकरण
के जुग मे
रच गया हूँ
नारी विभक्तिकरण
का नया एक समीकरण
डर रहा था मैं
की ना हो जाए
मुझ पर बेलनी प्रहार
पर हुआ मुझपर वो
जबरजस्त लेखनी प्रहार
की स्याही के रंग
से रंग कर 
मैं हुआ स्याह:

जलजला जी आपने सिर्फ चिट्ठाजगत की महिला ब्लोग्गेरों का ही दिल नहीं दुखाया है वरन उन सभी छद्मनामधारी, अनामी, बेनामी, और सूनामी ब्लोगरों जिन मे ये महामूर्खराज भी शामिल है का भी दिल दुखाया है जिन्होने कभी किसी तरह की कोई घटिया हरकत नहीं की। और आज आपके कारण बेवजह शर्मिंदगी उठा रहे है। और चिट्ठाजगत मे जलजला लाने का इतना ही शौक है तो अपने लेखों के द्वारा एक वैचारिक और सार्थक जलजला लाइए। जिससे समाज, देश, और विश्व का भला हो यह संभव नहीं है तो कम से कम पाठकों का तो भला हो ऐसे पोस्ट लाइए।
एक बात और किसी ब्लॉगर का नाम ले कर टीका टिप्पणी करने और पोस्ट को विवादित कर  झूठी प्रसिद्धि पाने की की मेरी आदत नहीं है और ना ही मुझे इसकी जरूरत है। यह पोस्ट तो आपके महान पोस्ट और जगह जगह पर की गयी आपकी टिप्पणियों का प्रतिफल मात्र है। इसे दिल से नहीं दिमाग से लीजिएगा।

बुधवार, 12 मई 2010

यह महामूर्खराज आज व्यथित हो गया, रुक जाओ मित्र विवेकानन्द पाण्डेय

मित्र विवेकानन्द पाण्डेय जी,

जीवन एक संघर्ष है ये सभी जानते हैं इसमे नया क्या है। ब्लोगजगत भी एक आभाषी दुनिया है सो ये भी संघर्ष रूपी प्राकृतिक गुणो से ओतप्रोत है। पर हम मानव इतने संवेदनशील होते है के अपनी संवेदनाओं मे बह कर आपने गंभीर लक्ष्यों को जल्दीबाजी मे त्यज देते है

एक बार एक पुस्तक मे पढ़ा था की एक मनुष्य सोने की तलाश मे खुदाई शुरू करता है पर ज्यों ज्यों दिन बीतने लगते है जोश ठंडा पड़ने लगता है और खुदाई के कार्यक्रम का इतिश्री हो जाता है और दूसरे मनुष्य को यह कार्य सौंप कर पराजित सा अपने घर लौट जाता है। और दूसरे आदमी को एक फुट खोदने के बाद ही स्वर्ण की प्राप्ति हो जाती है

जब मनुष्य स्वर्ण से मात्र एक फुट दूर रहता है तभी वह खनन कार्य बंद कर देता है। अर्थात सफलता प्रयास जारी रखने मे है नाकी प्रयास को बंद कर देने मे

गीता मे श्री कृष्ण जी ने भी कहा है

करमनये वधिकरसते मा फलेषु कदाचन:
 

मित्र, आप ने संस्कृत को आमजनो बीच स्थापित करने का बीड़ा उठाया है उसे मृत्यु के मुख मे मत धकेलिए। आज हम हिन्दी को ही स्थापित करने के लिए जूझ रहे हैं तो संस्कृत को स्थापित करना आपने आप मे ही एक महान किन्तु कठिन कार्य है। इस कार्य की गंभीरता और विशालता को समझते हुये सिर्फ संस्कृत के लिए सोचते हुये अपने भावनाओं वश उठाए गए कदम पर विचार कीजिये शेष आपकी ही इच्छा सर्वोपरि है। वैसे मनुष्य अपनी ही इच्छाओं से पराजित होता है अन्यथा वह सदैव ही अपराजित रहता है लोग ब्लॉग पढ़े ना पढ़े टिप्पणी करें या ना करें क्या फर्क पड़ता है कम से कम जो भी पाठक आपके संस्कृत-जीवन ब्लॉग से  जुड़े हुए हैं उनके बारे मे भी सोचिए वैसे ब्लॉग जगत का रोज विस्तार हो रहा है आप लिखते रहेंगे तभी एक नए संस्कृत ब्लॉग पाठक और लेखक वर्ग का सृजन हो पाएगा।

भावनावश यह महामूर्खराज यदि कुछ कटु शब्द बोल गया हूँ तो क्षमाप्रार्थी हूँ । उम्मीद है की आप लिखते रहेंगे

शुक्रवार, 7 मई 2010

भारतीय जुगाड़ टेक्नोलॉजी को सलाम

देखिए कैसे कैसे जुगाड़

फैविकोल के जोड़ वाली जुगाड़ू गड्डि

jugaad 

नेता जी की रैली मे चला जुगाड़

Politicaljugaad

लो जी छोटे नाबाब की जुगाड़ नैनो

Jugaad123

माल ढोने का जुगाड़ू सटाइल

Jugaad

बैलगाड़ी से जुगाड़ 

45731917210833715jugaad

जुगाड़ हुड़ीबाबा 

689677picture-4 

हुड़ीबाबा हुड़ीबाबा हुड़ीबाबा.............

jugaad-1024x685

कलात्मक जुगाड़ साइकिल 

jugaad-copy

सर्वर बैकअप जुगाड़ स्टाइल मे 

backup

जुगाड़ मिनी रेडियो 

jugaad_battery

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है बस जरूरत है आम जन के आम आविष्कारों को जो जुगाड़ के नाम से जाने जाते हैं, खास बनाने की जरूरत है। क्या पता वह भी एक दिन वर्ल्ड फ़ेमस हो जाए। ये जुगाड़ संसाधनों के अभाव से झुझते रहने का जीवट प्रदर्शन है।

अगर आपके पास भी जुगाड़ टेक्नोलॉजी की तस्वीरे है तो पोस्ट जरूर कीजिएगा और मुझे बताइएगा भी जरूर।

जय जुगाड़

नोट:- सभी तस्वीरें इंटरनेट से जुगाड़ की गईं है।

बुधवार, 5 मई 2010

ए भारत के लोकतंत्र

हाँ ए भारत के लोकतंत्र

चल पड़ा है तू किस राह पर

जनता के सेवक ये सफेदपोश

अब जनता से सलाम ठुकवाते है,

काली कमाई का जश्न मनता

उनके यहाँ रोज जिनमे

बहती सोमरस की नदियाँ हैं और

शबाब से मानती रंगरलियाँ हैं,

कबाबों के स्वाद मे उलझती

उनकी जिह्वा जनहित जनविकास

का नित नए स्वांग रचती,

पर भूख से बिलबिलाती

वो भी भारत की 44 करोड़ जनता है 

साम्यवाद का राग अलापता

वो वामपंथ रूसी चीनी

विचारधारा की प्रतिलिपि सा

दिखता है मुझको ,

खुद को उदारवादी कहने वाले

पूंजीवाद का उद्घोष करते हैं

सीमाएँ घिरी हैं विवादो से

है घिरी ऊर्जा संकट से

राजधानी दिल्ली बाँकी देश

भी डूबा हलाहल अंधेरे से,

हैरान परेशान है वो किसान

जो धरतीपुत्र कहलाता है,

अब सैनिक मरते है

संसाधनों के अभाव से

भूल गया है तू लोकतंत्र

जय जवान जय किसान का नारा

जा कह दे लोकतंत्र उन सपोलों से

जब होगा नयी क्रांति का शंखनाद,

तब जनता न ढूंढेगी नेतृत्व

हर जन होगा इक नायक

बंदूकें तोपें न रोक पाएँगी

उनके बढ़ते कदम

कुचले जायेंगे सारे विष भरे फन

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

किताबों भरी संदूकची महामूर्खराज के हाथ लगा साहित्यिक खजाना

गर्मी अपने चरम पर जैसे पहुँचने लगी है। दोपहर के भोजन के भोजन के पश्चात इस गर्मी और थकावट से निजात पाने के लिए अभी लेटा ही था की मेरे नौकर लक्षमी ने आ कर कहा मालिक आज ऊपर वाले स्टोर की सफाई कर रहा था तो एक पुरानी  संदूची मिली है जो  कागजो और किताबों से भरी पड़ी है और उसमे दीमक भी लगी हुई है एक बार देख लेते तो अच्छा होता शायद कोई काम के कागजात भी उसमे हों।

किताबें! बरबस मेरे मुख से निकाल पड़ा । उधर से जबाब आया - जी मालिक ।

मैं हरबड़ा के उठा और और छत की ओर दौड़ा। लक्षमी विस्मित नज़रों से मुझे देख रहा था। मेरी इस हरबड़ाहट को देख मेरी दादीअम्मा ने कुछ कटु अंदाज अंदाज़ मे कहा क्यूँ रे लक्षमी तू ने लल्ला से ऐसा क्या कह दिया जो वह इतनी धूप मे छत की और जा रहा है । भय से क्लांत लक्षमी जजी... वो... से अधिक कुछ कह नहीं पाया उधर दादीअम्मा भी लल्ला सुन तो .... कहती हुई मेरे पीछे हो ली । एक तरफ मैं किताबों के प्रेम मे वशीभूत था दूसरी तरफ दादीअम्मा मेरे । सच ही कहा जाता है मूल से ब्याज प्यारा होता है।

मेरे इस उतावलेपन का राज असल मे मेरे प्रपितामह(दादा जी के पिता) का साहित्य प्रेम था। उनके पास इस प्रकार की पुस्तकों का अच्छा ख़ासा संग्रह भी था चूंकि हमारा यह पैतृक निवास पिताजी के फारबिसगंज रहने के कारण बीस वर्षों तक वीरान रहा तो वह सारा संग्रह देखभाल के अभाव मे दीमकों ने चट कर दिया था। शायद इनमे उस साहित्यिक संपदा का का जीवित भाग मिल जाए यह सोच कर मैं और अधीर हो था और यह स्टोर भी हमारे यहाँ आने के बाद आज पहली बार खुला था तो इस बात की पूरी संभावना थी। उस चक्रवाती तूफान को धन्यवाद जिसकी बजह से यह कमरा खुला। 

जैसे ही मैंने संदूकची को पलटा मेरी आखें फटी की फटी रह गयी। वह संभावना सत्य मे तब्दील हो गयी। मैं बस अब उन्हे अपने हाथों से झाड़ता जा रहा था और जवित बची उन संपदाओं को छांट कर अलग कर रहा था। हालांकि उनमे से आधे से अधिक नष्ट हो चुकी है फिर भी करीब 70 - 80 किताबें जीवित है । जो की मेरे लिए एक अमूल्य सम्पदा है।

अब सोच रहा हूँ की घर मे एक  छोटा सा पुस्तकालय बना कर इन्हें संरक्षित करूँ । गाँव मे पुस्तकालय तो है नहीं और अच्छी साहित्यिक कृतियाँ भी दुकानों मे मिलती नहीं जो खरीद के पढ़ लूँ। पर कहते हैं न ऊपर वाला जब भी देता देता छप्पर फाड़ कर। यह पुस्तकालय व्यक्तिगत कम सार्वजनिक रहेगा ताकि ग्रामीण साहित्य प्रेमी भी इसका लाभ उठा सकें। अपने महानगरीय भ्रमण के के दौरान नयी कृतियों को खरीद कर इसका विस्तार भी करूँगा। कुछ समय निकाल कर इन्हें डिजिटल फ़ारमैट मे तब्दील करने का भी प्रयास रहेगा ताकि ये लंबे समय तक संरक्षित रहें।

कुछ किताबों का विवरण इस प्रकार से है

1. सामर्थ्य और सीमा (उपन्यास) भगवती चरण वर्मा राजकमल प्रकाशन 1962

2. लाल पसीना(उपन्यास) अभिमन्यु अनत राजकमल प्रकाशन 1977

3. आधा गाँव (उपन्यास) राही मासूम रजा राजकमल प्रकाशन1966

4. चिलमन(कहानी संग्रह) बलवंत सिंह राजकमल प्रकाशन 1970

5. पचपन खंभे लाल दीवारें(उपन्यास) उषा प्रियंवदा राजकमल प्रकाशन 1972

6। बादशाह गुलाम बेगम(एकाँकी संग्रह) गिरिराज किशोर राजकमल प्रकाशन 1979

7. जीप पर सवार इल्लियाँ (व्यंग संग्रह) शरद जोशी राजकमल प्रकाशन 1971 

समय का अभाव है शेष किताबों का विवरण बाद मे दूंगा।

एक सूचना :- अबसे हर हफ्ते रविवार को "महामूर्खराज की पुस्तकालय से" शीर्षक पोस्ट के दुवारा इस साहित्य सम्पदा से एक पोस्ट मे समा जाने वाली साइज की कृतियाँ प्रकाशित करूँगा ताकि इस साहित्यि आनंद को आपके साथ भी बाँट सकूँ। पोस्ट की कोमन शीर्षक के साथ कृती का शीर्षक भी जुड़ा होगा।

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

महामूर्खराज खुश हुआ... यययायाया........ हू

तुम लौट आयी,

दूर हुआ हलाहल अंधेरा,

रोशनी की  चकाचौंध देख,

भाई ये दिल मेरा, 

गार्डेन गार्डेन हुआ,

विरह पीड़ा तो,

थी दिल मे,

पर तेरी भी,

अपनी मजबूरी थी,

प्रकृति के तूफ़ान ने,

रोके थे तेरे कदम,

पर आठवें दिन तेरा,

आ जाना भी,

किसी अष्टम अचरज,

से ना है कम,

संयोग भी क्या गज़ब है,

तेरे आगमन का,

इक तरफ मुख्यमंत्री जी,

पधारे ब्लोगजगत मा,

दुजी तरफ बिजलीरानी,

पधारी तू हमरे गाम मा,

(गाम = गाँव)

चक्रवाती तूफान को आए आठ दिन बीत गए। बिजली के खंभे टूट गए थे, पर आज व्यवस्था दुरुस्त हुई बिजली रानी झलक दिखला कर चली गयी पर उम्मीद है............................

अरे भाई विश्वास है की ये चंचला चपला अब बराबर झलक दिखलाती रहेगी।

भाई खुशी के मारे भावनाओं का समुद्र उमड़ पड़ा है बस आपके साथ मिल कर खुशियाँ मनाना चाहता हूँ।

एक पुरानी कहावत  

बिन पानी सब सून

पर महामूर्खराज उवाच:

बिन बिजली पानी सब सून