गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

किताबों भरी संदूकची महामूर्खराज के हाथ लगा साहित्यिक खजाना

गर्मी अपने चरम पर जैसे पहुँचने लगी है। दोपहर के भोजन के भोजन के पश्चात इस गर्मी और थकावट से निजात पाने के लिए अभी लेटा ही था की मेरे नौकर लक्षमी ने आ कर कहा मालिक आज ऊपर वाले स्टोर की सफाई कर रहा था तो एक पुरानी  संदूची मिली है जो  कागजो और किताबों से भरी पड़ी है और उसमे दीमक भी लगी हुई है एक बार देख लेते तो अच्छा होता शायद कोई काम के कागजात भी उसमे हों।

किताबें! बरबस मेरे मुख से निकाल पड़ा । उधर से जबाब आया - जी मालिक ।

मैं हरबड़ा के उठा और और छत की ओर दौड़ा। लक्षमी विस्मित नज़रों से मुझे देख रहा था। मेरी इस हरबड़ाहट को देख मेरी दादीअम्मा ने कुछ कटु अंदाज अंदाज़ मे कहा क्यूँ रे लक्षमी तू ने लल्ला से ऐसा क्या कह दिया जो वह इतनी धूप मे छत की और जा रहा है । भय से क्लांत लक्षमी जजी... वो... से अधिक कुछ कह नहीं पाया उधर दादीअम्मा भी लल्ला सुन तो .... कहती हुई मेरे पीछे हो ली । एक तरफ मैं किताबों के प्रेम मे वशीभूत था दूसरी तरफ दादीअम्मा मेरे । सच ही कहा जाता है मूल से ब्याज प्यारा होता है।

मेरे इस उतावलेपन का राज असल मे मेरे प्रपितामह(दादा जी के पिता) का साहित्य प्रेम था। उनके पास इस प्रकार की पुस्तकों का अच्छा ख़ासा संग्रह भी था चूंकि हमारा यह पैतृक निवास पिताजी के फारबिसगंज रहने के कारण बीस वर्षों तक वीरान रहा तो वह सारा संग्रह देखभाल के अभाव मे दीमकों ने चट कर दिया था। शायद इनमे उस साहित्यिक संपदा का का जीवित भाग मिल जाए यह सोच कर मैं और अधीर हो था और यह स्टोर भी हमारे यहाँ आने के बाद आज पहली बार खुला था तो इस बात की पूरी संभावना थी। उस चक्रवाती तूफान को धन्यवाद जिसकी बजह से यह कमरा खुला। 

जैसे ही मैंने संदूकची को पलटा मेरी आखें फटी की फटी रह गयी। वह संभावना सत्य मे तब्दील हो गयी। मैं बस अब उन्हे अपने हाथों से झाड़ता जा रहा था और जवित बची उन संपदाओं को छांट कर अलग कर रहा था। हालांकि उनमे से आधे से अधिक नष्ट हो चुकी है फिर भी करीब 70 - 80 किताबें जीवित है । जो की मेरे लिए एक अमूल्य सम्पदा है।

अब सोच रहा हूँ की घर मे एक  छोटा सा पुस्तकालय बना कर इन्हें संरक्षित करूँ । गाँव मे पुस्तकालय तो है नहीं और अच्छी साहित्यिक कृतियाँ भी दुकानों मे मिलती नहीं जो खरीद के पढ़ लूँ। पर कहते हैं न ऊपर वाला जब भी देता देता छप्पर फाड़ कर। यह पुस्तकालय व्यक्तिगत कम सार्वजनिक रहेगा ताकि ग्रामीण साहित्य प्रेमी भी इसका लाभ उठा सकें। अपने महानगरीय भ्रमण के के दौरान नयी कृतियों को खरीद कर इसका विस्तार भी करूँगा। कुछ समय निकाल कर इन्हें डिजिटल फ़ारमैट मे तब्दील करने का भी प्रयास रहेगा ताकि ये लंबे समय तक संरक्षित रहें।

कुछ किताबों का विवरण इस प्रकार से है

1. सामर्थ्य और सीमा (उपन्यास) भगवती चरण वर्मा राजकमल प्रकाशन 1962

2. लाल पसीना(उपन्यास) अभिमन्यु अनत राजकमल प्रकाशन 1977

3. आधा गाँव (उपन्यास) राही मासूम रजा राजकमल प्रकाशन1966

4. चिलमन(कहानी संग्रह) बलवंत सिंह राजकमल प्रकाशन 1970

5. पचपन खंभे लाल दीवारें(उपन्यास) उषा प्रियंवदा राजकमल प्रकाशन 1972

6। बादशाह गुलाम बेगम(एकाँकी संग्रह) गिरिराज किशोर राजकमल प्रकाशन 1979

7. जीप पर सवार इल्लियाँ (व्यंग संग्रह) शरद जोशी राजकमल प्रकाशन 1971 

समय का अभाव है शेष किताबों का विवरण बाद मे दूंगा।

एक सूचना :- अबसे हर हफ्ते रविवार को "महामूर्खराज की पुस्तकालय से" शीर्षक पोस्ट के दुवारा इस साहित्य सम्पदा से एक पोस्ट मे समा जाने वाली साइज की कृतियाँ प्रकाशित करूँगा ताकि इस साहित्यि आनंद को आपके साथ भी बाँट सकूँ। पोस्ट की कोमन शीर्षक के साथ कृती का शीर्षक भी जुड़ा होगा।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई...आप भाग्यशाली हैं जो आपको इतनी पुरानी पुस्तकें मिली.और पुस्तकों की जान्कारी की प्रतीक्षा रहेगी.

    जवाब देंहटाएं
  2. आपका बतिया सब ठीके है.. ई जेतना किताब का नाम आप बोले हैं सब बेजोड़ है.. लेकिन एगो बात नहीं बुझाया ..ई पूरा लिस्ट में जो सबसे पुराना किताब है ऊ है भगवती बाबू का 1962 का अऊर राही मासूम साहेब का 1966 का... त अगर आपके परदादा ऊ किताब छपने के साथे भी खरीदे होंगे त अपका उमर केतना होगा... तनी फरिया के बताइएगा... बाकी सहेज के रखिए ई सब बहुत किमती समान है...

    जवाब देंहटाएं
  3. साहित्‍य सेवा कर रहे हैं

    बहुत ही बढिया कार्य है

    शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी किताबें राजकमल की हैं, इसमें बहे कोई राज है क्या?

    जवाब देंहटाएं