मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

महामूर्खराज और 3 ईडीयट्स

अभी कुछ ही दिन पहले इस फिल्म को देखने का अवसर मिला मेरे पाठको ये मत कहिएगा की क्या पुरानी बासी खबर ले आए क्योकि भैया मेरे गाँव मे रहता हूँ जहाँ सिनेमाघर का ही अभाव है नई और ताजा फिल्मे कैसे देखूँ। धन्य है वो पाइरेसी करने वाले जिनकी वजह से हम ग्रामीण थोड़ा बहुत मनोरंजन कर पाते है पर फिर भी मैं पाइरेसी के सख्त खिलाफ हूँ । पर इतना तो चलता है ।

अब आते हैं मुद्दे की बात पर इस फिल्म के तीनों पात्रो ओर इस महामूर्खराज मे काफी समतुल्यता है पर उनसे अलग भी हूँ । समतुल्यता तो रेंचो (आमिर खान) के पात्र से अधिक है क्योकि वह फिल्म का मुख्य पात्र था और मैं इस ब्लॉग का ।

फिल्म देख कर बरबस अपने कलकत्ता स्थित पोद्दार छात्र निवास मे बिताये पल याद आ गए। वैसे तो शैक्षणिक योग्यता जो अंको के आधार पर होती है उसमे तो  ठीक अन्य दो पात्र  के समतुल्य था यानि सबसे पीछे पर हरकते रेंचो वाली थी।

कोर्स की किताबे तो कम पढ़ता था फिर भी एम॰ बी॰ ए॰ बनने का ख्वाब देखा करता था । वैसे कुछ न कुछ पढ़ने की आदत तो बचपन से थी उसे इस महानगर मे तो जैसे विशाल पुस्तकालय मे पढ़ने जैसा अवसर मिल गया पर चुकीं विद्यार्थी जीवन था अर्थ (धन)  का सदैव अभाव रहता था। थोड़े-थोड़े  पैसे जमा कर एक आध किताबें खरीद भी लेता था पर उनसे अपने पढ़ने की ललक का शमन नहीं कर पाता था।

अचानक एक दिन लैंडमार्क (अब स्टारमार्क) नामक डिपार्ट्मेंटल स्टोर जो पुस्तकों, संगीत और स्टेशनरी पर आधारित था का पता चला बस फिर क्या था मैं अपने पुस्तक प्रेम वश वहाँ पहुँच गया । वाह वाह ! अब तो मेरे इस  ज्ञान की भूख का शमन हो जाएगा। बस फिर क्या था जब समय मिलता वहाँ पहुँच जाता विषयों के आधार पर करिने से व्यवस्थित और प्रदर्शित किताबों मे से बस अपने पसंद की किताब उठा कर पढ़ने लगता कभी कभार कुछ खरीद भी लेता ताकि मेरी इस मुफ्त मे पढ़ने की आदत पर कोई आपत्ति ना करे ।

नैतिक दृष्टिकोण से तो यह गलत था पाप था पर शास्त्रो मे भी कहा गया है "भूभ्क्षितम किम न करोति पापं" अर्थात भूखा क्या पाप नहीं कर सकता।  भैया मैं भी तो भूखा था ज्ञान का भूखा ।  

मनोविज्ञान, दर्शन, धर्म, विज्ञान, प्रबंधन, और व्यक्तित्व विकास जैसे विषयों को विशेष रुचि के साथ पढ़ा और समझा। इन्होने ही सम्मलित रूप से मुझे अपने जीवन का लक्ष्य प्रदान किया । मैं ने पाया एक एम॰ बी॰ ए॰ का कार्य होता है संसाधनों का यथेष्ट सदुपयोग करना इसके लिए एक डिग्री से अधिक स्वयं की क्षमता की जरूरत होती है (पर पर फिर भी प्रबंधन महाविद्यालयों मे पढ़ाये गए ज्ञान से मदद भी मिलती है और काफी हद तक जरूरी भी )

बरबस मुझे अपना गाँव याद आया वे बेरंग पड़ी पुरखो की वो खेतिहर ज़मीनें जो बस अपने बिकने के इंतजार  मे अश्रुपूर्ण क्रंदन करती नजर आयी जिसके अन्न ने कभी मेरे इस शरीर और मस्तिष्क को सींचा था आज स्वयं जल के अभाव मे सुख कर फट रही थी ।

बस उसी दिन से मैं किसान बन गया जीवन का उद्देश्य हो गया की गाँव जाना है अपने संसाधनों का यथेष्ट सदुपयोग करना है इसमे एक स्वार्थ भी था और एक कमजोरी भी, दर्शन भी, प्रबंधन भी और एक धर्म भी कृषिधर्म।

भैया मेरे सत्य कह रहा हूँ मेरे इस निर्णय पर तो मानो भूचाल आ गया मेरे सखागण और करीबी पारिवारिक सदस्यों ने तो मुझे मूर्ख कहा ही और न जाने क्या क्या भला बुरा कहा । उनके लिए तो मैं जैसे दोयम दर्जे का नागरिक (सेकंड क्लास सिटिज़न) बन गया ।

पर मेरे माता पिता, दादी, बहन आदि का सहयोग प्राप्त हुआ लो इस प्रकार यह महामूर्खराज किसान बन गया ।

हाँ तो मुझ मे और रेंचो मे यह समानता है की दोनों ने अपने दिल की सुनी और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने मे सफल रहे । विरोधाभास भी है कहाँ एक प्रबुध वैज्ञानिक रेंचो कहाँ यह महामूर्खराज किसान ।

पर मेरा यह निर्णय मेरे लिए हमेशा खास रहेगा वैसे भी महानगरीय चमक दमक को छोड़ कर ग्राम जीवन अपनाना कोई खेल नहीं

आप इस बारे मे क्या सोचते है यह तो आप पर निर्भर है ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. रचना की तारीफ करनी होगी।

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  2. महामूर्खराज जी, मैं आपकी तरह किसान तो नहीं लेकिन मूर्खता में आपके बराबर ही ठहरूंगा! आप मेरे ब्लौग पर आये और मुझे आपके परिचय का सौभाग्य प्राप्त हुआ!
    एक सात्विक मूर्ख का प्रणाम स्वीकार करें! ईश्वर आपकी मूर्खता में दिनोंदिन वृद्धि करे, इसी कामना के साथ!
    जय मूर्खता! जय मूर्ख!

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  3. हे महामूर्खराज ,सबसे पहले तो मैं आपको आभार सहित धन्यवाद अर्पित करती हूँ कि आपने मेरे ब्लॉग का अनुसरण करके मेरी हौसला अफजाई की है .
    फिर मैं आपके गॉव जाने के निर्णय पर आपकी प्रशंसा करना चाहूंगी क्योंकि ये बहुत हौसले का काम है और सबके बस का नहीं है ,लेकिन ये मेरा अनुभव है कि धरती की सेवा करने से बहुत सुकून मिलता है ,इस कार्य में अगर मेरे सहयोग की आवश्यकता हो तो निस्संकोच याद कीजिएगा ,पारंपरिक खेती के साथ साथ आप जड़ी -बूटियों की खेती करके भी धन प्राप्त कर सकते हैं और सस्ते आयुर्वेदिक ईलाज से गॉव वालों की सेवा भी कर सकते हैं

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  4. छोटी नहीं बड़ी बात है
    बनना किसान
    भारत की अर्थवव्यस्था में
    है बहुत योगदान

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  5. रैंचो भाई, आल इज़ वैल।
    लोग शहरों की तरफ़ भाग रहे हैं, आप गांव की तरफ़ आ गये। और मुझे लगता है कि ये काम लोग कई दशकों के बाद करेंगे। हालांकि गांव भी अब वैसे सरल नहीं रह गये हैं, पर आपने अपने दिल की सुनी और कदम उठाया, शुभकामनायें स्वीकार करें।

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