जी हाँ मैं सत्य कह रहा हूँ आखिर ऐसी क्या वजह हो सकती है की हम अपने भारतीय होने पर गर्वित महसूस करें। अब आप कई उदाहरण देंगे और मुझे मूर्ख साबित करेंगे वैसे मैं तो हूँ ही महामूर्खराज। पर जो कह रहा हूँ सत्य ही कह रहा हूँ। थोड़ी दलील मेरी भी सुन लीजिए।
वैसे भी इस ब्रहमाण्ड का जन्म भी शून्य से हुआ है यह तो एक वैज्ञानिक तथ्य है। अध्यात्म और तत्व ज्ञान भी तो इसी शून्य के इर्द गिर्द घूमते हैं। तो यदि मेरा भारतीय होने पर गौरवान्वित होने की वजह शून्य है तो मेरा क्या गुनाह। वैसे भी आज भारतीय होना नकारात्मकता को ही घोतक है ठीक जैसे शून्य होना। और मूर्ख होना भी शून्यता का प्रतीक पर गौर कीजिये तो महा से महाज्ञानी भी मूर्ख है क्योंकि पूर्णता भी शून्य है और अपूर्णता भी शून्य है।
इस शून्य की जन्मभूमि भी हमारा भारतवर्ष है। वह देश जो विश्व की सबसे पुरातन जीवित सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है। संस्कृत जैसी अत्यंत वैज्ञानिक भाषा का सूत्रधार है। आजतक विश्व मे जितनी भी खोजें और आविष्कार हुये हैं वह बिना भारतीय सहयोग के असंभव हैं। या तो इन खोजी और आविष्कारक दलों में कोई कोई भारतीय या भारतीय मूल का वैज्ञानिक होता है यदि भारतीय मूल का व्यक्ति भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा होता है तो वो प्रतिनिधित्व भारत पुत्र शून्य करता है।
जब पश्चिम सभ्य होना सीख रहा था तब भारतवर्ष इस्पात पर अनुसंधान कर रहा था। आज पश्चमी विश्वविद्यालय अपनी श्रेष्ठता का गुणगान करते हैं पर भारत तो इस विश्वविद्यालय संरचना का ही जनक है तक्षशिला और नालंदा इसके उदाहरण हैं।
फिर भी आज आम हो या खास हर भारतीय के लिये, "मुझे गर्व है की मैं भारतीय हूँ" सरीखे वाक्य महत्वहीन हैं। शायद यही वजह है की हम अपने राष्ट्रगान पर खड़े होने मे अपनी प्रतिष्ठा का हनन और वन्दे मातरम का गान भी विवादित है। पर नैतिक पतन को जीवित रहने की जरूरत और बुध्दू बक्से और सिनेमा अरे अब तो यूँ कहे की आम जीवन मे प्रदर्शित भोंडेपन को समय की जरूरत बताते फिरते है।
वास्तविकता यह है की हम अपनी मौलिकता खोते जा रहे हैं खुद को भारतीय कहते हैं पर अपनी विरासत को भूलते जाते है।
गांधी के बंदर वाले मौलिक भारतीय विचार को अप्रायोगिक और आज के समयानुसार बकवास बताते है पर नकलची बंदर की तरह पश्चिम का अनुसरण करने मे गर्व महसूस करते है।
संक्षेप मे कहे तो हम जन्म से भारतीय हैं पर कर्म और विचार से पश्चमी विदेशी। हम आज व्यथित हैं देश स्वार्थी नेताओं के हाथों मे है पर उसका कारण भी तो हमारा अपनी मौलिक विचारधारा से दूर होना ही है क्योंकि भारतीय दर्शन आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है पर पश्चमी दर्शन भौतिकता से।
गर्व से कहो हम भारतीय हैं पर भारतीयता शून्य भारतीय