बुधवार, 12 मई 2010

यह महामूर्खराज आज व्यथित हो गया, रुक जाओ मित्र विवेकानन्द पाण्डेय

मित्र विवेकानन्द पाण्डेय जी,

जीवन एक संघर्ष है ये सभी जानते हैं इसमे नया क्या है। ब्लोगजगत भी एक आभाषी दुनिया है सो ये भी संघर्ष रूपी प्राकृतिक गुणो से ओतप्रोत है। पर हम मानव इतने संवेदनशील होते है के अपनी संवेदनाओं मे बह कर आपने गंभीर लक्ष्यों को जल्दीबाजी मे त्यज देते है

एक बार एक पुस्तक मे पढ़ा था की एक मनुष्य सोने की तलाश मे खुदाई शुरू करता है पर ज्यों ज्यों दिन बीतने लगते है जोश ठंडा पड़ने लगता है और खुदाई के कार्यक्रम का इतिश्री हो जाता है और दूसरे मनुष्य को यह कार्य सौंप कर पराजित सा अपने घर लौट जाता है। और दूसरे आदमी को एक फुट खोदने के बाद ही स्वर्ण की प्राप्ति हो जाती है

जब मनुष्य स्वर्ण से मात्र एक फुट दूर रहता है तभी वह खनन कार्य बंद कर देता है। अर्थात सफलता प्रयास जारी रखने मे है नाकी प्रयास को बंद कर देने मे

गीता मे श्री कृष्ण जी ने भी कहा है

करमनये वधिकरसते मा फलेषु कदाचन:
 

मित्र, आप ने संस्कृत को आमजनो बीच स्थापित करने का बीड़ा उठाया है उसे मृत्यु के मुख मे मत धकेलिए। आज हम हिन्दी को ही स्थापित करने के लिए जूझ रहे हैं तो संस्कृत को स्थापित करना आपने आप मे ही एक महान किन्तु कठिन कार्य है। इस कार्य की गंभीरता और विशालता को समझते हुये सिर्फ संस्कृत के लिए सोचते हुये अपने भावनाओं वश उठाए गए कदम पर विचार कीजिये शेष आपकी ही इच्छा सर्वोपरि है। वैसे मनुष्य अपनी ही इच्छाओं से पराजित होता है अन्यथा वह सदैव ही अपराजित रहता है लोग ब्लॉग पढ़े ना पढ़े टिप्पणी करें या ना करें क्या फर्क पड़ता है कम से कम जो भी पाठक आपके संस्कृत-जीवन ब्लॉग से  जुड़े हुए हैं उनके बारे मे भी सोचिए वैसे ब्लॉग जगत का रोज विस्तार हो रहा है आप लिखते रहेंगे तभी एक नए संस्कृत ब्लॉग पाठक और लेखक वर्ग का सृजन हो पाएगा।

भावनावश यह महामूर्खराज यदि कुछ कटु शब्द बोल गया हूँ तो क्षमाप्रार्थी हूँ । उम्मीद है की आप लिखते रहेंगे

8 टिप्‍पणियां:

  1. dost main apake sath hun. hame milkar pandeyji ko rokna hoga. main to unke blog par apani baat kah aya hun.

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  2. आप निराश मत होईए हम आप के साथ हैं ।

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  3. पाण्डे जी को निराश नहीं होना चाहिये और जो बीड़ा उठाया है, उस पर लगे रहना चाहिये.

    शुभकामनाएँ.


    एक विनम्र अपील:

    कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.

    शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

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  4. To say himself a fool is not a easy joke . A person like you never be a mahaamurakh. kavi like Tulsidas always called him self mooond , khal , kaamee but we knows the realty.The person who is growing crops in fields can grow the crops of thoughts, poetry etc.Thanks to comming on my blog and make acomment.

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  5. अच्छी द्रष्टान्त कथा देकर समझाया. सच्ची मित्रता इसे ही कहते हैं.

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  6. मित्र सच में बहुत ही लज्जित हूं । हो सके तो आप और मेरे ब्‍लाग परिवार के अन्‍य सदस्‍य मुझे माफ कर दें । मैं लिखना बन्‍द नहीं करूंगा । आप से वादा है ।

    आपने मुझे बहुत बडी प्रेरणा दी है । सतत प्रयत्‍न करता रहूंगा , कुछ भी हो जाए , कम से कम आप मित्रों के लिये ही , लिखना बन्‍द नहीं करूंगा । एक बार फिर क्षमा प्रार्थी हूं । हो सके तो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


    आपका - आनन्‍द

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  7. आप आपने को मूर्खराज क्यों लिखते हैं. किसानों के बिना भारत कुछ भी नहीं है.

    ______________
    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है !!

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