बुधवार, 5 मई 2010

ए भारत के लोकतंत्र

हाँ ए भारत के लोकतंत्र

चल पड़ा है तू किस राह पर

जनता के सेवक ये सफेदपोश

अब जनता से सलाम ठुकवाते है,

काली कमाई का जश्न मनता

उनके यहाँ रोज जिनमे

बहती सोमरस की नदियाँ हैं और

शबाब से मानती रंगरलियाँ हैं,

कबाबों के स्वाद मे उलझती

उनकी जिह्वा जनहित जनविकास

का नित नए स्वांग रचती,

पर भूख से बिलबिलाती

वो भी भारत की 44 करोड़ जनता है 

साम्यवाद का राग अलापता

वो वामपंथ रूसी चीनी

विचारधारा की प्रतिलिपि सा

दिखता है मुझको ,

खुद को उदारवादी कहने वाले

पूंजीवाद का उद्घोष करते हैं

सीमाएँ घिरी हैं विवादो से

है घिरी ऊर्जा संकट से

राजधानी दिल्ली बाँकी देश

भी डूबा हलाहल अंधेरे से,

हैरान परेशान है वो किसान

जो धरतीपुत्र कहलाता है,

अब सैनिक मरते है

संसाधनों के अभाव से

भूल गया है तू लोकतंत्र

जय जवान जय किसान का नारा

जा कह दे लोकतंत्र उन सपोलों से

जब होगा नयी क्रांति का शंखनाद,

तब जनता न ढूंढेगी नेतृत्व

हर जन होगा इक नायक

बंदूकें तोपें न रोक पाएँगी

उनके बढ़ते कदम

कुचले जायेंगे सारे विष भरे फन

3 टिप्‍पणियां:

  1. saara kachcha chittha khol diya sirji loktantra ka....natmastak hun...

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  2. बहुत ही सार्थक व्यंग ,ऐसे ही लिखने से देश और समाज को बदला जा सकता है ,और तीखा लिखिए ,कभी तो शर्म आएगी इन बेशर्मों को /

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  3. जय हो....जय हो....जय हो मुर्खाधिराज की.....अरे सॉरी भाई......जुगाडू-महाराज की.....!!वाह....बल्ले....बल्ले....

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